सफर
क्यू चले हो अकेले इन सुनसान राहों पे न कोई मंजिल है इनकी न कोई ठिकाना है इनका बस यूंही इन गुमराह राहों पे चलते चले जाना है ले कहा जायेगी ये राहें मुझको ये मालूम नही फिर मिलूंगा के नही मुझको ये मालूम नही निकल पड़ा हू एक अंतहीन सफर पे ले कहा जायेगी ये राहें मुझको यह मालूम नही चलते चलते इन राहो पे खयाल तुम्हारा आता है वो मुस्कुराता चेहरा तुम्हारा याद तुम्हारी दिलाता है बस उन यादों को दिल में सजोकर निकल पड़े है इक सफर पे ले कहा जायेगी ये राहें मुझको यह मालूम नही।