मेरी पहली कविता
जब हम होते है बच्चे
मां बाप होते है सब से अच्छे
धीरे धीरे जब हम होने लगते है बड़े
हमे लगने लगते है अच्छे कॉलेज के छड़े
समय बीतता जाता है और आ जाती हमारी पत्नी
हमे लगती है उसकी हर बात अपनी
अब तो सारा समय उसके आगे पीछे है बीतता
मां बाप का समय हमारी यादों में था गुजरता
जब भी आता था फोन उनका हमारे पास
कह देते थे पांच मिनट में करते है आप से बात
उनकी बूढ़ी आंखो में था बेटे से मिलने का सपना
बेटे के लिए अपनी तरक्की थी पहला सपना
धीरे धीरे समय बीतता जाता है
सब कुछ पीछे छूटता जाता है
बूढ़ी आंखे खोजती थी आसमान के तारो में
पथराई आंखे तलाशती थी अपने सितारे को
बेटा हो जाता है अपने दुनिया में व्यस्त
भूल जाता है अपनी असली शख्सीयत
तभी एक दिन मिलती है मां बाप के गुजरने की सूचना
फिर एहसास होता है कि हमसे है क्या छीना........क्या छीना
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