मैं शांतिनिकेतन हू


आज मिला था अवसर 
शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के भ्रमण का
उमंगे मार रही थी जोर इस पल का
ये वही पावन स्थल है
जिसकी गुरुदेव ने की थी स्थापना  
5 बच्चे थे गवाह इस महान पल के
इसी विश्वविद्यालय में लिखी  गई थी
महान कलजायी गीतांजली 
यही वो स्थल है जहां पढ़ते थे 
छात्र बगीचे में पेड़ो के नीचे
कई महान लोगो ने थी की यहा पढ़ाई
जिन्होंने ने पूरी दुनिया में है पहचान अपनी बनाई
आज घुसा जब मै उस परिसर में
आंखे फटी सी रह गई पल भर में
सड़के थी टूटी हुई और जर्जर थे हुए इमारत
जो कह रहे थे कहानी अपनी इस दुर्दशा पर
वो भवन जहा गुरुदेव ने थी लिखी 
अपनी कलजायी गीतांजली
उसकी विरानी सुना रही थी अपनी कहानी
वो भवन जहां गुरुदेव ने थे बिताए अंतिम दिन
वो सोच रहा था आज गुरुदेव के बिन
अच्छा नही है वो आज देखने को ये सब
वो बरगद का पेड़ रोकर कह रहा था ये सब
सभी कर रहे थे आपस में ये बाते
अब कौन सुनेगा हमारी फरियादे 
रो रहे थे सब विश्वविद्यालय की दुर्दशा पर
यहा तो लोग करते है चर्चा सिर्फ 
स्थापना और गुरुदेव के जन्म दिवस पर 
गुरुदेव की सुनी आंखे है तलाशती 
ऊपर से रहती है रोज निहारती 
उन टूटी सड़को और जर्जर इमारतों को
क्या यही सपना मैने सोचा था
क्या यही सपना मैने देखा था....

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