सुबह का भूला

 

इक बार हमने छोड़ दिया घर
एक छोटी बात बात पर 
नया जोश था
नई उमंग थी
दोस्तो पे था  बहुत भरोसा 
जेब में था न एक पैसा 
चौराहे पर पहुंचते ही घुमाया दोस्त को फोन
उधर से दोस्त के पापा ने पूछा हो तुम कौन
मैने जब अपना परिचय उनको बताया
तब उन्होंने फोन मेरे दोस्त को थमाया
जब अपने दोस्त को मैंने अपनी कहानी सुनाई 
तब उसने तुरंत मुझे अपनी मजबूरी बताई 
बोला मैं तो हू आज शहर से बाहर
कुछ नही कर पाऊंगा तुम्हारे लिए मैं चाहकर
तभी पीछे से उसकी मम्मी ने बोला
बेटा राम जरा दरवाजा तो खोलो
तुम्हारी दादी आई है 
तुम्हारी नई बैट लाई है
तब मेरी समझ में बात आई
फोन कट करने में है मेरी भलाई
फिर मैंने घुमाया  दुसरे और तीसरे दोस्त को फोन
सबने दे अपनी lमजबूरी का  हवाला काट दिया मेरा फोन
उनकी बातो सुनकर निकल गई सारी हेकड़ी
अब क्या होगा मेरा ये सोचकर आ गई झुरझुरी
सुबह से नहीं था कुछ मैने खाया
जाकर रेलवे स्टेशन पे रात बिताया
स्टेशन के प्लेटफॉर्म के बेंच पर जागते हुवे सारी रात गुजरी
अब क्या होगा मेरा ये सोचकर आ गई झुरझुरी
अब कहा किसके पास जाऊंगा
कैसे अपना सारा जीवन बिताऊंगा
जिन दोस्तो के भरोसे छोड़ दिया था घर
उन्होंने ने आज फेर ली मुझ से अपनी नजर
सुबह उठा तो लगी थी भूख
सोचने लगा बेवकूफी में दे दिया अपनो को दुःख 
तुरंत मां को फोन लगाया 
और रोते हुवे अपने गलती पे अफसोस जताया
बोला अब नहीं होगी ऐसी गलती आजीवन 
ये जीवन रहेगा सदा आप लोगो की सेवा में अर्पण....

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