मन की व्यथा
आज न जाने है क्यो
मन बहुत बेचैन है क्यों
कुछ तो बोलना चाहता है ये
कुछ तो समझाना चाहता है ये
ये कैसी अकुलाहट सी है
ये कैसी झुंझलाहट सी है
मैं समझना चाहता हू
मैं सुलझाना चाहता हू
लेकिन ये मन भी है एक पहेली
बड़ी अदभुत है ये अबूझ सहेली।
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