खामोशी
हादसे ऐसे क्या हो गए दरमिया हमारे
जो राहे जुदा हो गई हमारी
तल्खिया ऐसी क्या हो गई दरमिया हमारे
जो राहे जुदा हो गई हमारी
गलतफहमियां ऐसी क्या थी दरमिया हमारे
जो सुलझाई जा न सकी
क्यो अजनबी बन गए हम दोनो
क्यों उन खामोशियों को सुन न सके हम दोनो
चले थे साथ मिलके जिन राहो पे
वो राहें क्यो जुदा हो गई
कही जाती है आज भी हमारी अधूरी मोहब्बत की कहानियां
जो कभी कहलाते थे दो जिस्म एक जान
क्यों वो आज अपनो से बेगाने हो गए
वो खंडहर करता है आज भी इंतेजा उनका
कभी फिर से होगा आबाद ये महल उनके सपनों का ।
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