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Showing posts from September, 2022

कश्मकश

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ये कैसी कश्मकश है ऐ मेरे दोस्त बड़ी अजीब सी है ये कश्मकश ए मेरे दोस्त हम तो हमेशा एक तरफा वफा निभाते चले गए पर ये लोग है जो हमे बेवफाई दिखलाते गए झूठे वादे ,झूठे सपने, झूठी दुनिया का ये जंजाल है यहां तो चारो तरफ दूर दूर है फैला झूठ का मायाजाल है लोगों ने चेहरे पर लगाया है झूठ का मुखौटा  नही दिखाना चाहते है वो अपना असली चौखटा  अब तो यहां घुटन सी महसूस होती है ए मेरे दोस्त अब तो निकलना है यहां से बेहतर ए मेरे दोस्त।

नवरात्रि है नवदुर्गा मां

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हो रहा है प्रारम्भ नवरात्रि महोत्सव का है ये अवसर अनुभव का जगत जननी मां दुर्गा के नव रूप का  प्रथम दिन है मां शैलपुत्री का यह दिव्य चेतना का है दर्शन मां के स्वरूप का  द्वितीय दिन है मां ब्रह्मचारिणी का  है ये अनुभव मां के योगनी स्वरूप का तृतीय दिवस है मां चंद्रघंटा का देता है दर्शन यह हमे मां के सौम्य स्वरूप का चतुर्थ दिवस है मां कूष्माण्डा का है ये दर्शन मां के आदिशक्ति, प्राणशक्ति स्वरूप का  पंचम दिवस है मां स्कंदमाता का ये है अदभुत दर्शन मां के ज्ञानशक्ति ,कर्मशक्ति स्वरूप का षष्ठी दिन है मां कात्यायनी का है ये दर्शन मां के महिषासुरमर्दिनी स्वरूप का सातवा दिन है मां कालरात्रि का है यह दर्शन  मां के संहार रूपणी  स्वरूप का आंठवा दिवस है महाअष्टमी मां महागौरी का है ये आलौकिक दर्शन मां के करुणामयी, फलदायिनी स्वरूप का नवा दिवस है नवमी मां सिद्धिदात्री का है यह अनुपम दर्शन सम्पूर्णता का मां के सिद्धि  स्वरूप का

ये भी क्या दिन हैं

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आजकल है एकाकी परिवार का चलन नही है आजकल हममें  अपने रिश्तों को निभाने का चलन कर देते है अपनो रिश्तों को हम हमेशा के लिए दरकिनार  अब तो हमारी जरुरत  है  अपने लिए नए दोस्तो की दरकार  माता पिता को नही है फुरसत दफ्तर के काम से गुजरता बच्चो का बचपन है  घर पर नौकरों के भरोसे मां के लोरियो के जगह  मोबाइल फोन ने ले ली है मां की गोद की जगह  घर की आया ने संभाली है जब आते है लौट कर  माता पिता घर पर शाम को हो जाते  है व्यस्त वो  दोबारा अपने दफ्तर के काम से खो जाता है बच्चो का  बचपन हो जाता है खत्म उनके अंदर का  इमोशन नही होता है कोई उनका अपना  जिसके साथ बांटे वो अपना सपना धीरे धीरे समय बीतता जाता है  बच्चे बड़े हो जाते है अब वो स्कूल से निकल कर कॉलेज में पढ़ने जाते है हो जाते है अब वो अपने  कॉलेज में दोस्तो के साथ व्यस्त धीरे धीरे हो जाते है अब वो नए माहौल में अभ्यस्त  आ जाता है अब मां और पिता के  सेवा निवृत्त होने का समय और बच्चो के कॉलेज की पढ़ाई  पूर्ण कर नौकरी करने का समय अब वो आ जाते है घर पर  र...

वो भी क्या दिन थे

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वो भी क्या जमाना था जब एक ही घर में सब का ठिकाना था रहते थे सब साथ मिलाकर दादी दादा, चाची चाचा,  बुआ, टिंकू, चिंटू और सभी था घर छोटा उनका  पर दिल था सबका बड़ा  बनता था खाना सबका  एक ही लकड़ी वाले चूल्हे  या किरासन तेल से चलने वाले स्टोव पे और घर की सब औरतें थी  मिलकर बनाती बड़े चाव से उसको जिसमें था स्वाद प्रेम का  और थी मिठास अपनेपन की रात होते ही पहुंच जाते थे  सब बच्चे पास दादा दादी के  सुनने कहानियां पंचतंत्र ,  रामायण और महाभारत की  वो गांव या कस्बे के स्कूल में पढ़ने  पैदल या साइकिल से जाना कार्य न करने पर स्कूल अध्यापक की  डांट सुनना या मार खाना बच्चों के माता पिता का  उनसे शिकायत न करना  आपने हमारे बच्चे क्यों मारा था वो अध्यापक के प्रति उनका  अलग ही श्रद्धा और विश्वास दर्शाता था वो त्यौहारों के बीस पच्चीस दिन  पहले से उसकी तैयारियां करना सब लोगो का इस अवसर पर घर में इकट्ठा होना  और मिलकर बड़े उत्साह से त्यौहारों को  मनाना घर पर बने  विभिन्न प्रकार के  स्वादिष्ट प...

जिंदगी

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क्या हो रहा है ए जिंदगी ऐसा क्यों हो रहा है ए जिंदगी तुम क्यों इतने अजनबी से हो गए न जाने कब से  खफा खफा से हो गए ए जिंदगी ये बता दे तू मुझे  क्या है कमी मुझमें ये समझा दे तू मुझे हमने तो हर पल था दिया साथ तेरा क्यो चल दिए छोड़ के तुम मुझको अकेला ए जिंदगी ये बता दे तू मुझे  क्या है कमी मुझमें ये समझा  दे तू मुझे हमने तो चाहा था तुझमें ये जहां सारा तुमने तो कर दिया हमको इस जहां से बेसहारा ए जिंदगी ये बता दे तू मुझे  क्या है कमी मुझमें ये समझा दे तू मुझे

विश्वकर्मा महोत्सव

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है देव शिल्पी का जन्मोत्सव आज कहलाते है  पूरे विश्व में वो विश्वकर्मा महाराज है विष्णु पुराण में इनकी महत्ता का वर्णन प्रजापति ब्रह्मा के सातवे पुत्र के रूप में है इनका अदभुत प्रदर्शन जब की थी रचना सृष्टि की ब्रह्मा जी ने तब संपूर्ण सृष्टि के निर्माण की जिम्मेदारी थी संभाली विश्वकर्मा जी ने ये है सभी देवों के वास्तुकार और इंजीनियर था किया निमार्ण सभी देवों के अस्त्र शस्त्रों का समय समय पर आज होती है सर्वत्र कल  कारखानों में इनकी पूजा  जिससे होती है उन्नति और तरक्की कल कारखानों और सभी का

हिंदी दिवस

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आज है दिवस हिन्दी का   यह दिवस है अनेकता में एकता का था कहा गांधी जी ने १९१८ हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी है जनमानस की भाषा  यही होनी चाहिए हमारी राष्ट्रभाषा था संपूर्ण भारतवासी का एक सपना आजादी के बाद हो पूरे देश मे एक भाषा अपना किया गया था घोषित १४ सितंबर १९५९ में राष्ट्रभाषा हिन्दी को था उद्देश्य जुड़े सब लोग इस भाषा से  सम्पूर्ण देश के  दिया है योगदान देश के अनेक साहित्यकारों  ने जिनकी रचनाओं  ने हिंदी भाषा को पहुचाया घर घर में  आओ मिलकर ले संकल्प इस बात का है बनाना इस भाषा को प्रत्येक जनमानस का।

पितृ पक्ष

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आज से हुई है शुरुआत पितृपक्ष की यह दिवस है अपने पितरों के तर्पण का वो लोग जिनकी करते नही है  हम कद्र उनके जीवित रहने पर करते है याद उनको हम  इस दुनिया से चले जाने पर नही ये सोचते है हम कितनी  तकलीफों से पाला है हमको दे कुर्बानियां अपने सपनो  की   संभाला है उन्होने हमको कितनी रातें थी काटी जाग कर  जब हम हो जाते थे बीमार  हमारी खुशियों के लिए कर देते थे वो  अपनी हर खुशी को दरकिनार हमारे हर सपने में थे देखते  और जीते थे वे अपने सपनो को उनको ही कर देते है तन्हा  हम  अपने पैरो पे खड़े होते ही जिन्होंने सारी रात जग के  गुजारी थी हमारे खुशियों के लिए उन्ही को छोड़ के चल देते है  हम अपनी खुशियों के लिए वो बूढ़ी आंखे करती है  हर रोज हमारा इंतजार  लेकिन हम तो रहते है पाने को  अपने सपनो को बेकरार नही होती है फुरसत  हमारे पास  उनसे बात करने की  हो जाते है मगन हम छोड़ उनको  अपनी पारिवारिक दुनिया में नही रहता है हमे ये भी याद  थे हम भी कभी  किसी के परिवार का हिस्सा  उन खामोश आंखो में कभी...

उम्र की बंदिशे

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        हमारे मोहल्ले में रहते थे अंकल हमारे उमर थी पैसठ की मगर दिल था पच्चीस का उनका उमंगे जवान थी और मन की तरंगे हिलोरे मार रही थी रोज खड़े होकर घर की बालकनी मे निहारा करते थे  आने जाने वालों खूबसूरत चेहरों को  कहा करते थे कि पुरुष की उम्र तो होती है हीरे के समान बढ़ती जाती है  चमक इसकी समय बीतने के साथ दिल चाहता था बहुत कुछ करने को मगर उम्र का तकाजा था एक बार कर रहे थे बस में सफर खड़े होकर बहुत आनंद आ रहा था उनको इस सफर पर थी बहुत भीड़ उस दिन बस में तभी बस ड्राइवर ने ब्रेक मारा अंकल ने था अपना बैलेंस  बिगड़ा  और जा टकराए आगे खड़ी महिला से महिला ने गुस्से से देखा और बोली अंकल भीड़ का एडवांटेज ले रहे हो जानबूझ कर मुझे धक्का दे रहे हो  अपनी उम्र को तो देखो  घर में नहीं है क्या मां बहन तुम्हारी अंकल की हो गई सिटीपिट्टी गुम बड़ी मासूमियत से बोले वो तो है सब लेकिन बच्चो की मां नही रही है इस दुनिया में अब उसकी तलाश में भटक रहा हू यह सुनकर महिला ने आंखे तरेरी अंकल ने घबराकर अपनी नजरे फेरी फोन में था शौक चलसित्र देखने का  एक बार हो ग...

मोहब्बत

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वो वीरान गलियां जो कभी  गुलजार रहा करती थी कभी वहा भी रहा करते थे  लोग इश्क करने वाले चर्चा ए आम थी उनकी   दस्ताने  मोहब्बत  जमाने में  लोग खाया करते थे कसमें  उनके मोहब्बत का नाम लेकर  न जाने किसकी लग गई नजर उनको  एक आंधी आई और उजड़ गया घरोंदा उनका बिछड़ गए दो मोहब्बत करने वाले हो गया धराशाही सपनों का महल उनका अब तो  छाई रहती है विरानिया वहा जब भी उस रास्ते से हो कर गुजरता हूं मैं आज भी महसूस  होता है  एहसास उनके वहा होने का वो खंडहर आज भी सुनाते है  उनकी दस्ताने मोहब्बत का फसाना  उन फिजाओ में आज भी सुनाई देती है  कहानियां उनकी खामोश मोहब्बत का अक्सर वहा महसूस होता है उनके नगमों के तरन्नुम का एहसास शायद  इसी का नाम तो मोहब्बत है शायद  इसी का नाम तो इबादत है जिसको न कोई झुका सका है  जिसको न कोई मिटा सका है।

ख्वाहिशें

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सितारों को छूने की है तमन्ना  आसमानो में उड़ने की है तमन्ना सपनों को पाने की है तमन्ना  जिंदगी को जीने की है तमन्ना इन तमन्नाओं की चाहत भी अजीब है जिसे मिल जाए वो बड़ा खुशनसीब है वरना तो जिंदगी भागते भागते बीत जाती है  मुट्ठी में रेत को जितना भी पकड़ो वो हाथो से फिसल जाती है खोना और पाना है और बस आगे चलते चले जाना है यूंही हर इन्सान को जीवन के पथ पर चलते चले जाना है  बस चलते चले जाना है....,......................

शिक्षक दिवस

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आज है शिक्षक दिवस का ये  पावन अवसर  उस गुरु  शिष्य परंपरा को नमन करने का है ये अवसर  जो सदियों से चली आ रही है इस धरा पर वो गुरु वशिष्ठ और  शिष्य प्रभु राम  जिन्होंने किया था आजीवन  पालन  मर्यादा का  और विश्व में कहलाए मर्यादा पुरुषोत्तम  वो गुरु सांदीपनि और शिष्य श्री कृष्ण  जब मांगा था गुरु माता ने अपना पुत्र गुरु दक्षिणा में  तो ले आए गुरु के पुत्र को यमराज से छुड़ाकर  वो महान एकलव्य और गुरु द्रोण  गुरु द्रोण ने गुरु दक्षिणा में अंगूठा जब मांगा एकलव्य से हंसते हंसते काटकर किया था अर्पण अंगूठा गुरु के चरणो मे  वो गुरु समर्थ रामदास और शिष्य छत्रपति शिवाजी  जो ले आए थे गुरु की खातिर बाघिन का दूध  लगा के अपने प्राणों की बाजी ये धरा  भरी है अनेकों  गुरुओं और शिष्यों कहानियों से जिन्होंने निभाई गुरु शिष्य की ये महान परंपरा सदियों से ये दिवस मनाया जाता है देश के  दूसरे राष्ट्रपति  सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के रूप में था किया अनुरोध इसको शिक्षक दिवस मनाने के रुप में  आज कल गु...

नादानियां

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कुछ यादें हमेशा क्यो सताती है  मैं भूलना चाहता हू तो भी याद क्यों आ जाती है कुछ वादे जो किए थे मैने खुद से  जो पूरी हो न सकी मेरी नादानियों से  जब भी रात को चांद की ओर देखता हू मुझे वो सब कुछ याद आता है  वो मंजर चलचित्र सा मेरी आंखों के सामने घूम जाता है चले गए है अब बहुत दूर वो मुझसे उन सितारों के पास जहां से कोई लौटकर नही आता  रोज रात उन तारों को सूनी आंखो से निहारते हुवे ये सोचता हूं  काश मैं अपने उन वादों को पूरा कर पाता काश मैं अपने उन वादों को पूरा कर पाता............