ये भी क्या दिन हैं
आजकल है एकाकी परिवार का चलन
नही है आजकल हममें
अपने रिश्तों को निभाने का चलन
कर देते है अपनो रिश्तों को
हम हमेशा के लिए दरकिनार
अब तो हमारी जरुरत है
अपने लिए नए दोस्तो की दरकार
माता पिता को नही है फुरसत
दफ्तर के काम से
गुजरता बच्चो का बचपन है
घर पर नौकरों के भरोसे
मां के लोरियो के जगह
मोबाइल फोन ने ले ली है
मां की गोद की जगह
घर की आया ने संभाली है
जब आते है लौट कर
माता पिता घर पर शाम को
हो जाते है व्यस्त वो
दोबारा अपने दफ्तर के काम से
खो जाता है बच्चो का बचपन
हो जाता है खत्म उनके अंदर का इमोशन
नही होता है कोई उनका अपना
जिसके साथ बांटे वो अपना सपना
धीरे धीरे समय बीतता जाता है
बच्चे बड़े हो जाते है
अब वो स्कूल से निकल कर
कॉलेज में पढ़ने जाते है
हो जाते है अब वो अपने
कॉलेज में दोस्तो के साथ व्यस्त
धीरे धीरे हो जाते है अब वो
नए माहौल में अभ्यस्त
आ जाता है अब मां और पिता के
सेवा निवृत्त होने का समय
और बच्चो के कॉलेज की पढ़ाई
पूर्ण कर नौकरी करने का समय
अब वो आ जाते है घर पर
रिटायर हो हमेशा के लिए
अब उन्हें होता है अहसास
कि खो दिया सब कुछ हमेशा के लिए
समय का चक्र घूम जाता है
फिर से वही पर
अब नही होता है बच्चों के पास
कोई वक्त उनके लिए
अब तो उनको है बिताना अपना
शेष जीवन नौकरों के भरोसे
यही हैआजकल ये प्रत्येक
एकाकी परिवार की कहानी
प्रकृति का है ये बड़ा क्रूर नियम
जो हमने दिया था वही हमे मिलना है
जैसे सागर की लहरे में लौटा देती है वापस
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