पितृ पक्ष
आज से हुई है शुरुआत पितृपक्ष की
यह दिवस है अपने पितरों के तर्पण का
वो लोग जिनकी करते नही है
हम कद्र उनके जीवित रहने पर
करते है याद उनको हम
इस दुनिया से चले जाने पर
नही ये सोचते है हम कितनी तकलीफों से पाला है हमको
दे कुर्बानियां अपने सपनो की संभाला है उन्होने हमको
कितनी रातें थी काटी जाग कर जब हम हो जाते थे बीमार
हमारी खुशियों के लिए कर देते थे वो अपनी हर खुशी को दरकिनार
हमारे हर सपने में थे देखते और जीते थे वे अपने सपनो को
उनको ही कर देते है तन्हा हम अपने पैरो पे खड़े होते ही
जिन्होंने सारी रात जग के गुजारी थी हमारे खुशियों के लिए
उन्ही को छोड़ के चल देते है हम अपनी खुशियों के लिए
वो बूढ़ी आंखे करती है हर रोज हमारा इंतजार
लेकिन हम तो रहते है पाने को अपने सपनो को बेकरार
नही होती है फुरसत हमारे पास उनसे बात करने की
हो जाते है मगन हम छोड़ उनको अपनी पारिवारिक दुनिया में
नही रहता है हमे ये भी याद
थे हम भी कभी किसी के परिवार का हिस्सा
उन खामोश आंखो में कभी सूखे आंसू नहीं देखे थे हमने
वो उफ तक करते नही थे कभी हमारे इस तिरस्कार पर
करते रहते थे हमेशा अपमान उनका हम
नही देख पाते थे उनके मुस्कुराते चेहरे के पीछे का गम
फिर एक दिन चले जाते है छोड़ इस दुनिया से हमको वो
तब होता है एहसास उनके खोने का हमको
याद आती है अपनी हर अमानुषियत हमको
पर अब क्या हो सकता है जो चले गए इस दुनिया से वो
जहा से कोई लौट कर वापस नहीं आता
कहते है इस पितृ पक्ष में हमारे पितृ आते है पक्षी बनकर
और खाते है भोजन जो उन्हे हम करते है रोज अर्पण
करे सम्मान अपने माता पिता और घर के बुजुर्गो का
नही आने दे कोई आंसू उनकी आंखों में इक कतरा
ये वो वृक्ष है जिसकी छाया रहती है हमेशा साथ
जो उनके न रहने पर भी दिलाती है हमेशा उनकी याद।
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