मोहब्बत

वो वीरान गलियां जो कभी
 गुलजार रहा करती थी
कभी वहा भी रहा करते थे
 लोग इश्क करने वाले
चर्चा ए आम थी उनकी  
दस्ताने  मोहब्बत  जमाने में 
लोग खाया करते थे कसमें 
उनके मोहब्बत का नाम लेकर 
न जाने किसकी लग गई नजर उनको 
एक आंधी आई और उजड़ गया घरोंदा उनका
बिछड़ गए दो मोहब्बत करने वाले
हो गया धराशाही सपनों का महल उनका
अब तो  छाई रहती है विरानिया वहा
जब भी उस रास्ते से हो कर गुजरता हूं मैं
आज भी महसूस  होता है 
एहसास उनके वहा होने का
वो खंडहर आज भी सुनाते है
 उनकी दस्ताने मोहब्बत का फसाना 
उन फिजाओ में आज भी सुनाई देती है 
कहानियां उनकी खामोश मोहब्बत का
अक्सर वहा महसूस होता है
उनके नगमों के तरन्नुम का एहसास
शायद  इसी का नाम तो मोहब्बत है
शायद  इसी का नाम तो इबादत है
जिसको न कोई झुका सका है 
जिसको न कोई मिटा सका है।

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