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Showing posts from January, 2023

गणतंत्र दिवस

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आज दिवस है बहुत महत्वपूर्ण आज मिला था हम को सम्पूर्ण  आज है हमारा गणतंत्र दिवस मानते है २६ जनवरी को हर वर्ष आज मिला था देश को  एक नया विधान जिसको कहते है हम हमारा अपना संविधान  किया संघर्ष और दिया बलिदान हमारे वीरों ने  तब जाके देखा एक नया सवेरा हम सब लोगो ने आज के दिन देश के प्रथम राष्ट्रपति  डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने  फहराया था तिरंगा बड़े शान से इरविन स्टेडियम में  यह दिवस हर वर्ष है राष्ट्र पर्व के रूप में हम मानते  इस दिवस पर अब राष्ट्रपति राजपथ पर झंडा है फहराते यह दिवस हमारी एकता में अनेकता को है दर्शाता यह दिवस हमारे मूल अधिकारों को है हमको समझाता  आओ हम सब मिलकर ले ये प्रण हम   झुकने न देंगे अपने तिरंगे का मान हम  ।

स्वामी विवेकानंद

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हुआ था जन्म एक बालक का  करने आया था कल्याण विश्व का  नाम था नरेंद्र नाथ दत्त उनका बचपन से था लगाव अध्यात्म में उनका गुरु थे उनके महान संत श्रीं रामकृष्ण जी  थे अति प्रिय गुरू को स्वामी विवेकानंद जी गुरु के आदर्शों से प्रेरित था उनका जीवन कर दिया था अपने को समाज के लिए अर्पन पच्चीस वर्ष के आयु मे गेरुआ वस्त्र धारण कर और निकल पड़े सम्पूर्ण विश्व भ्रमण पर चले विश्व को वेदांत दर्शन का पाठ पढ़ाने भारतीय दर्शन और अध्यात्म का महत्व समझाने शिकागो में फहराया परचम भारतीय सनातन धर्म का किया मंत्रमुग्ध अपने भाषण से वहा उपस्थित श्रोतागण का  वेदांत दर्शन को विश्व के हर कोने कोने में पहुंचाया लोगो को जीवन जीने का नया मार्ग दिखलाया देश के स्वंत्रता आंदोलन में दिया महत्वपूर्ण योगदान करते रहेंगे सदा हम सब उन पर  हमेशा अभिमान किया विरोध पाखंडों और सामाजिक कुरीतियों  का  और किया स्थापना रामकृष्ण मिशन का  जीवन में शिक्षा और सामाजिक सेवा महत्व को बतलाया अपने रचनाओं के माध्यम से सब लोगो को जगाया दिया त्याग अपने शरीर को 39 वर्ष की अल्पायु में किया महान कार्य जो कोई कर न पाया अपने लंबे जीवन में।

मुकद्दर

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जब हम पहली बार तुमसे मिले थे दिल में अरमान बहुत सारे  खिले थे फिर हमारे मिलने का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ जैसे पतझड़ के बाद फूलों का खिलना शुरू हुआ जिंदगी बहुत खुशनुमा सी हो गई थी ऐसा लग रहा था सारी दुनिया मिल गई थी अचानक इक तूफान आया जीवन में उड़ा ले गया सब कुछ अपने संग में उजड़ गया घर हमारा बसने से पहले डूब गई किश्ती किनारे पे पहुंचने से पहले जिंदगी ऐसे मोड़ पे हमें ले आई जहां हर तरफ है बेबसी और तन्हाई  अब हो हालत ऐसा हो गया है हमारा  जुबां पे जिक्र भी न कर सकते है तुम्हारा ।

मां सरस्वती

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हे विद्यादायनी ! हे वीणावादनी ! हे माता करते है आपको सादर नमन सिर झुका कर करते है आप का वंदन आप की जिस पर हो जाती है दया मिलती है उसको सबसे बड़ी दौलत विद्या  हे मां सरस्वती ! हे मां हंसवाहिनी आप हो इस जगत की  जननी करती है दूर इस जगत का अंधकार बजा के अपनी वीणा के मधुर तार देकर हम सबको अपना आशीर्वाद  कर दो जीवन उज्जवलित और आबाद आने ना देना कभी हममें अहंकार ना करे हम कभी किसी का तिरस्कार  दूर करो हमारा अज्ञान  दे दो हमको विद्या का वरदान बस यही है आप से प्रार्थना स्वीकार करो मां मेरी ये अर्चना  हे  ज्ञानदायनी ! हे मां शारदा।

पिकनिक

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आज हम सब निकले है पिकनिक करने को आज हम सब निकले है मस्ती करने को आज होगा मस्ती और हंगामा आज होगा गाना और बजाना निकले पड़े हम साथ साथ कहीं दूर  चल पड़े हम रोज के भागम भाग से दूर  ये मौका है अपने को रिलैक्स करने का ये अवसर है नई उर्जा से लबरेज होने का जा पहुंचे हम पिकनिक स्पॉट पे  होने लगी तैयारियां बातों बातों में कुछ लोग काटने  लगे सब्जियां  कुछ लोग करने लगे मस्तियां जमने लगी चुटकुलों की महफिल फूफा ने शुरू की नृत्य की महफिल वो फूफा का मस्ताना डांस  और साथ में आंटी का स्टांस तभी मंत्री ने ठुमका लगाया  अंकल ने नागिन डांस पे कमर हिलाया  कुछ लोग निकल पड़े घूमने को कुछ लोग निकल पड़े बोटिंग करने को मौसा ने नौका विहार का लुफ्त उठाया जब टिंकू ने खुद नाव का चप्पू चलाया सबने मिलकर स्वादिष्ट खाना बनाया साथ में बैठकर खाने का आनंद उठाया मस्ती मस्ती में ये दिन कब बीत गया पता ही नहीं चला समय कब निकल गया  सब चल पड़े वापस अपने अपने घर को  फिर पिकनिक पे मिलने का वादा करके ।

फ्लैश बैक

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न जाने हमे नींद  क्यों आती नही है न जाने तुम्हारी याद क्यों जाती नही है बहुत कोशिश की हमने  तुम्हे भुलाने की मगर बहुत कोशिश की हमने तुम्हे दिल से मिटाने की मगर जब भी बंद करते है आंखें हम ये सोच कर न देखेंगे उन वीरान गलियों में  हम कभी जीवन में ये सोच कर  आंखों के सामने अनायास ही तुम्हारा अक्स चला आता है घबराहट के मारे अनायास यूं ही  हमारा दिल जोरों से धड़क जाता है उठ कर बैठ जाते है हम   और सोचने लगते है हम क्या उनको भूल  पायेंगे हम क्या उनको भूला पायेंगे हम ।

चेहरे

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जीवन में आपके अनेकों मोड़ आयेगे कुछ चाहे अनचाहे चेहरे साथ छोड़ जायेंगे किसी को दोष देने से क्या फायदा ए  मेरे दोस्त किसी से शिकवा शिकायत से क्या होगा ए मेरे दोस्त कुछ अच्छे चेहरे आपको खुशियां दे जायेंगे कुछ अजीब से चेहरे आपको जीवन का सबक दे जायेंगे  कुछ चेहरे आपको इक खूबसूरत यादें दे जायेंगे जिन्हे आप जीवन भर चाह के भी न भूल पाएंगे ।

उम्मीद

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यह रात भी कितनी खामोश है न जाने दिल में क्यों कुछ अफसोस है तुम्हारे जाने के बाद बहुत तलाशा तुमको मगर न तुम मिली न तुम्हारा ठिकाना मिला हमको काश तुमने मेरा इक बार इंतजार तो किया होता काश तुमने मेरा एतबार तो किया होता चली गई तुम कुछ अनकही अफसाने छोड़कर चली गई तुम कुछ अधूरे सवालातो को छोड़कर  तलाश में तुम्हारी दर बदर भटक रहे है आज भी हम कही तो मिलोगी यही सोच कर सफर में है आज भी हम

चलचित्र

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तुम्हारे शहर में आया हू  इक जमाने के बाद इन सुनी गलियों को देख मुझे आ रहा है कुछ याद ये वही गालियां है जहा  मोहब्बत की हवाएं बहती थी तेरे पायल की छन छन से  यह गली गूजा करती थी वो तेरा मुझको देख कर घबड़ा जाना भाग कर दरवाज़े के पीछे छिप जाना यूंही सब चलचित्र के तरह याद आता है मुझे वो मंजर आज भी तुम्हारी याद दिलाता है तुमसे बिछड़े ज़माने हो गए हमको कभी न हम भूल पाएंगे तुमको  न जाने तुम कहां होगी अब न जाने फिर मिलेगी कब दिल से यही दुआ  निकलती है हमारी खुश रहो सदा तुम  यही अरदास है हमारी

राम कथा (तृतीय खण्ड )

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तभी समयचक्र ने ली करवट  सब कुछ हो गया उलट पलट  होगा कैसे संघार असुरों का हुवे देवता चिंतित देख दशा देवो की मां सरस्वती हो गई  विचलित  जा बैठी मंथरा की जिह्वा पर कर दिया मतिभ्रम मंथरा को मंथरा ने केकयी को  बार बार समझाया  केकयी से भरत के लिए राजसिंहासन की बात को मनवाया  अपने बातों को मनवाने की खातिर जा बैठी केकयी कोपभवन में जब पहुंचे राजा दसरथ केकयी के पास  पूछा आप क्यों हो इस शुभ अवसर पर उदास तब केकयी ने अपने दो वचनों की याद  राजा दशरथ को दिलाई अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन  और राम के लिए चौदह वर्ष के वनवास की फरमाइश सुनते ही केकयी की अनुचित मांग हुवे अचंभित राजा दशरथ महाराज किया प्रयत्न समझाने का केकयी को लेकिन अपनी जिद पे अड़ी रही वो हो गए मूर्छित राजा दशरथ वही पे नही कोई फर्क पड़ा केकयी पे  इधर हो रही थी तैयारियां जोरो से चारो तरफ माहौल था खुशी का जब पहुंचे राम राजा दशरथ के पास बोले वोआज्ञा दे पिताश्री महाराज  तब बोली केकयी राम से  अपने दो वचनों की बात राम से मांगा है मैने राजसिंहासन भारत के लिए जाना होगा तुम्हे चौदह वर्ष  वन के लिए सुनके बात केकयी की मंद मंद मुस्काए ह

राम कथा (द्वितीय खण्ड)

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गए ऋषि के संग दोनो भ्राता  पथ में मिला आश्रम गौतम ऋषि का पूछा महर्षि विश्वामित्र से हुआ ये कैसे किया उद्धार माता अहिल्या का धरती से चले राम संग लक्ष्मण के ऋषि विश्वामित्र मिथिला को राजा जनक के निमंत्रण पर  सीता जी स्वयंवर के अवसर पर  आए थे भाग लेने स्वयंवर में  अनेकों राजा और महाराजा  इस स्वयंवर को जीतने की  सब के मन में थी इच्छा  शर्त थी जो भी प्रत्‍यंचा  शिव जी के धनुष में चढ़ाएगा वही सीता जी के वर  बनने का सौभाग्य  पाएगा किया प्रयत्न सभी शूरवीर  राजाओं और महाराजाओं ने हिला न सके एक इंच  शिव धनुष को अनेक प्रयासों में  ऋषि विश्वामित्र की अनुमति लेकर  चले प्रभु राम प्रत्‍यंचा चढ़ाने को कर करके स्मरण शिव जी को मन ही मन  महान धनुष शिव को हाथों में लेकर ज्यो ही प्रत्‍यंचा चढ़ाया शिव धनुष का  करके ध्वनि बड़े जोर की टूट गया वह टूटने ध्वनि सुन महर्षि परशुराम वहा  आए किसने तोड़ा शिव धनुष क्रोधित हो चिल्लाए हुआ उनका विवाद वहा लक्ष्‍मण जी  प्रभु राम ने की क्षमा प्रार्थना उनसे तब हुआ जाके क्रोध शांत  उनका दिया आशीष महर्षि ने राम सिया को    बजने लगे गाजे बाजे पूरे नगर में गूंजे मंगल गीत चाहु ओर न