राम कथा (द्वितीय खण्ड)
गए ऋषि के संग दोनो भ्राता
पथ में मिला आश्रम गौतम ऋषि का
पूछा महर्षि विश्वामित्र से हुआ ये कैसे
किया उद्धार माता अहिल्या का धरती से
चले राम संग लक्ष्मण के
ऋषि विश्वामित्र मिथिला को
राजा जनक के निमंत्रण पर
सीता जी स्वयंवर के अवसर पर
आए थे भाग लेने स्वयंवर में
अनेकों राजा और महाराजा
इस स्वयंवर को जीतने की
सब के मन में थी इच्छा
शर्त थी जो भी प्रत्यंचा
शिव जी के धनुष में चढ़ाएगा
वही सीता जी के वर
बनने का सौभाग्य पाएगा
किया प्रयत्न सभी शूरवीर
राजाओं और महाराजाओं ने
हिला न सके एक इंच
शिव धनुष को अनेक प्रयासों में
ऋषि विश्वामित्र की अनुमति लेकर
चले प्रभु राम प्रत्यंचा चढ़ाने को कर
करके स्मरण शिव जी को मन ही मन
महान धनुष शिव को हाथों में लेकर
ज्यो ही प्रत्यंचा चढ़ाया शिव धनुष का
करके ध्वनि बड़े जोर की टूट गया वह
टूटने ध्वनि सुन महर्षि परशुराम वहा आए
किसने तोड़ा शिव धनुष क्रोधित हो चिल्लाए
हुआ उनका विवाद वहा लक्ष्मण जी
प्रभु राम ने की क्षमा प्रार्थना उनसे
तब हुआ जाके क्रोध शांत उनका
दिया आशीष महर्षि ने राम सिया को
बजने लगे गाजे बाजे पूरे नगर में
गूंजे मंगल गीत चाहु ओर नगर में
हुआ विवाह श्री राम सहित तीनों भ्राता का
मिला आशीर्वाद ऋषि मुनीजन सबका
होके विदा जानकी अयोध्या आयी
खुशी में अयोध्या नगरी रोशनी से जगमगाई
दिन बीत रहे थे खुशी के
प्रभु राम और मां जानकी के
नही था ज्ञात आने वाला है
बड़ा तूफान उनके जीवन में
राजा दशरथ ने गुरु वशिष्ठ से
राम के राज्याभिषेक को बोला
सुनकर यह शुभ समाचार
हो गए हर्षित सभी नगरवासी
चारो ओर मंगल गीत बजने लगे
खुशी में नगर के कोने कोने सजने लगे
होने लगी तैयारियां श्री राम के राज्याभिषेक की
राजा दशरथ के हर्ष के कोई सीमा नहीं थी
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