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Showing posts from November, 2022

कोशिश

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वो छोड़कर हमको चले गए करके तन्हा ये भी न सोचा हम कैसे जीयेंगे उनके बिन तन्हा हमने बहुत कोशिश की थी उनको मानने की  हमने बहुत कोशिश की थी उनको समझाने की  लेकिन उनकी आंखों ने पहना था गलतफहमी का चश्मा  न वो देख पाई मेरी आंखों से बहते आंसुओ का चश्मा उनको  हमारी हर बात अब नागवार लग रही थी उनको मानने की हर कोशिश नाकाम  हो रही थी आखिर चल दिए हमारी मोहब्बत को रूसवा करके आखिर चल दिए हमारी इबादत को   रुसवा करके घर का हर कोना उनके होने का अहसास दिलाता है उनकी याद में न जाने क्यों दिल हमारा डूबता जाता है शायद अब आप से मुलाकात ना हो पायेगी  ये जीवन आपकी यादों में यूंही बीत जायेगी ।

इबादत

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            आज जब तुम आए थे घर पे हमारे आ गए थे याद वो पुराने दिन हमारे घर की हालत हमारी कुछ ऐसी थी  छाई हुवी वीरानी घर में चारो तरफ थी तुमने पूछा क्या अकेले ही रहते हो घर को अस्त व्यस्त क्यों रखते हो देखो चारो तरफ धूल और जाले ही जाले है लगता है तुमने सालों से इनको संभाले है हमारी ओर वो देखकर बोली  मुझे न जाने ऐसा क्यों लगता है मानो   यहा घर का हर कोना   कुछ न कुछ मुझसे कहता है उसने हमसे पूछा कि कौन है वो संगदिल  जिसने न समझा तुमको प्यार के काबिल  बहुत बदकिस्मत होगी वो  जिसने ठुकरा दिया तुमको मैने बोला न कहो तुम  उसके बारे में ऐसा मुझको जरुरी नही है उसका साथ रहना ही मोहब्बत है  मेरे लिए तो उसके होने का अहसास ही मोहब्बत है।

बेबसी

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काश हम तुम साथ होते  न ऐसे हमारे हालात होते न यू तन्हाइयो में हम रोया करते न आंसुओं से तकिए को भिगोया करते जब हुवे थे हम जुदा  देख रहा था वो खुदा बेबसी हमारी देख रहा था वो नजरें नही मिला पा रहा था वो  कह रही थी चेहरे की खामोशी उसकी अब तो यही मुकद्दर है इस जीवन की जिंदगी यूंही बितानी है हमको इन पथरीली राहों पे चलते चले जाना है हमको।

अहसास

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               तुम्हारा याद आना खास है  तुम्हे भूल न पाना खास है वो ठंडी हवाओं का झोंका वो रेगिस्तान में पानी का धोखा  वो चांदनी रातों में फूलों से भीनी  खुशबू का आना वो पूर्णिमा की रात में चांद को एकटक निहारना वो बगीचे में फूलों का खिलना वो आम के पेड़ के पत्तों का हिलना वो सूखे पत्तो की सरसराहट  वो कांपते होठों की थरथराहट वो भींगे केशू से टपकती पानी बूंदे वो सर्दी में पत्तों पे चमकती ओस की बूंदे  वो तुम्हारे हाथों की चूड़ियों की खंखनाहट वो सन्नाटे में गूंजती पायल की छनछनाहट  वो समुद्र की लहरों का उठना वो पहाड़ों से झरनों का गिरना तुम्हारे होने का अहसास दिलाता है न जाने क्यों हमेशा याद  दिलाता है ।

दर्पण

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आज जब खड़ा था आइना के सामने   सोचने लगा कि यही है वो हमारे अपने  दिखलाता है हमारा यह असली चेहरा  छिपा नहीं सकते हम अपना नकली चेहरा यह हमे एहसास दिलाता हमारी गलतियां का यह हमे एहसास दिलाता हमारी  खुशियां का हमारे चेहरे बदलते भावों को दिखलता है  ये जीवन के हर कदम पर हमको समझाता है ये  क्या है सही और क्या है गलत एहसास कराता है ये हमारे  जीवन की वास्तविकता का एकमात्र दर्पण है ये  हमारा सच्चा शुभचिंतक है ये हमारा सच्चा निंदक है ये हमारी जीवन की परछाई है ये हमारी जीवन की सच्चाई है ये रोज हमारा होता है  सामना  इनसे  नही भाग सकते है चाहकर हम इनसे ।

पुरानी यादें

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तुम्हे देखकर क्यों लगता है ऐसे के हम मिले थे पहले कही तो न जाने क्यों एक धुधली सी याद  जो दिल को कुरेद रही है अनजाने में हुआ था जब पहली बार तुमसे सामना  दिल ने कहा था तुम तो हो कोई अपना न जाने यह कैसा अजीब सा एहसास है  न जाने क्यों मिलने की तुमसे आस है सारा दिन तुमको ही क्यों सोचता हू मै अक्सर तुमसे मिलने के मौके खोजता हूं  मैं हम कभी फिर दोबारा मिल पाएंगे क्या क्भी उन अधूरे सवालों का जबाब मिल जायेगा क्या ।

बालदिवस (चाचा नेहरू का जन्मदिवस)

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आज है 14 नवंबर मानते है हम बाल दिवस  आज है चाचा नेहरू का 133 जन्मदिवस  था बहुत प्रेम बच्चों से उनको कहते है बच्चे चाचा नेहरू थे उनको  नेहरू जी कहते थे देश का भविष्य बच्चों है आधुनिक भारत निर्माण की जिम्मेदारी इनसे ही है कोई डाक्टर ,कोई इंजीनियर और कोई वैज्ञानिक बनकर  करेगा देश की तरक्की में योगदान चहुओर  बिताए जेल में 3259 दिन देश के आजादी के लिए किया समर्पण पूरा जीवन देश के तरक्की के लिए लिखी थी जेल में अपनी आत्मकथा  ’स्वतंत्रता की ओर’  बने थे पहले प्रधानमंत्री आजाद भारत के भी रखी थी आधारशिला नव भारत के निर्माण की कहलाते  है वास्तुकार आधुनिक भारत के निर्माण के भी ।

गेट टुगेदर

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था कल अवसर एक गेट टुगेदर का हुवे थे सभी एकत्रित सेलिब्रेट करने नए कीर्तिमान  के अचीवमेंट का दिख रही थी सबके चेहरे पे खुशी की चमक मिला था यह अवसर पूरे दस वर्षो के बाद एक नया ही माहौल था एक नई उमंग सी थी पहली मिला था रिकॉग्निशन सब के सामने जब संपूर्ण टीम ने थामी थी ट्रॉफी हाथो में अपने कर रहे थे सब आपस में यह चर्चा  अब कौन नया कीर्तिमान बनायेगा अब किसका नंबर आयेगा  बस यही कामना है ऊपर वाले से यूंही नए नए कीर्तिमान बनते रहे  ये गेट टुगेदर का दौर यूंही चलता रहे।

मानवता

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वो साल 2020 का था  कुछ हुआ बहुत अजीब सा था अचानक ये खबर पूरे विश्व में आई  पड़ोसी देश में कोरोना ने तबाही मचायी हो गया था वहा सब कुछ अस्त व्यस्त मानव जीवन  हुआ कोरोना से ग्रस्त फिर ये तबाही हमारे देश में चली आयी संपूर्ण देश में शुरू हुई कोरोना से लड़ाई चारो ओर फैला था भय का माहौल अब क्या होगा लोगो में था कौतूहल  लग गया कर्फ्यू संपूर्ण देश के हर कोने में  मच गई अफरा तफरी सब लोगों में  सभी जगहों पे लगने लगी थी लंबी कतारें चाहे हो रेलवे स्टेशन ,बस स्टैंड  या सड़कों के किनारे हो गए बंद  दुकानें और कल कारखाने  हो गई ठप जिंदगी रोज कमाने वालों की  पड़ गए लाले एक एक निवाले को भी निकल पड़ा पैदल घर के लिए लोगो का हुजूम बच्चो को कंधो पर बिठाकर चलने को हूवे थे मजबूर सैकड़ों किलोमीटर घर की वो दूरी  नंगे पैरों से तय करती उन सूनी आंखों की मजबूरी वो दूध के लिए बिलखते बच्चों के आवाजें  वो अस्पतालों के सामने लोगो की लंबी कतारें वो ऑक्सीजन के अभाव में जीवन से जंग हारती सांसे वो अस्पतालों को दौड़ती लड़खड़ाते पैरो की आवाजें  वो नदी में तैरती अधजली लोगो की लाशें वो शमशान में जलती अपनो की लाशें हर तरफ मातम स

तुलसी विवाह

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देवउठनी एकादशी के इस पावन दिन पर वृंदा तुलसी और शालिग्राम के विवाह शुभ अवसर पर दियो और फूलों से मंडप को सजाकर इस अदभुत पल के साक्षी बनकर तुलसी विष्णु के विवाह  को रचाएं आओ हम सब मिलकर इस विवाह में शामिल होकर इसको सम्पन्न कराए।

छठ पूजा

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होता है महापर्व छठ का शुभारंभ  दीपावली के चौथे दिन कार्तिक मास  शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से करते है आराधना इस पावन पर्व मे  हम माता छठी देवी और सूर्य देव की  किया था इस व्रत को  प्रभु श्रीराम -माता सीता , द्रौपदी  , कर्ण और राजा प्रियव्रत ने होती है शुरुआत पहले दिन  इस पावन व्रत की नहाए- खाए से करके स्नान नदी में इस दिन  खाते है सिर्फ एक बार दिन में हम  चावल,चना दाल और कद्दू(लौकी) दूसरा दिन कहलाता है खरना का  रखके उपवास व्रती पूरे दिन का बनता है प्रसाद गुड़ के खीर का  मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से करते है ग्रहण प्रसाद शाम को व्रती खुशी से तीसरा दिन होता है निर्जला व्रत का जाते है  नदी के किनारे शाम को सब लेके प्रसाद ठेकुआ,गन्ना और मौसमी फल का देते है  व्रती संध्या अर्ध डूबते  सूर्य देव को दूध और जल का  चौथे दिन प्रातः काल में उगते सूर्यदेव को जल दे के  करते है प्रार्थना माता छठी और सूर्य देव से  अपने संतान और परिवार के सुख शांति का तब होता है जा कर समापन छठ महापर्व का    !