मित्रता दिवस यह रिश्ता होता ही है ऐसा सीप में छिपे मोती के जैसा न देखता है कोई अमीरी गरीबी हर वक्त रहता है सबसे करीबी न होती है इसमें कोई जगह तकल्लुफ की ये तो बंधन है दिल से दिल तक की चाहे हो दोस्ती स्कूल ,कॉलेज , लाइब्रेरी या मौहल्ले की आता था मजा खूब जब हम करते थे धमाचौकड़ी चाहे रहे हम कितने भी दूर दोस्तों से होते है पास बुरे वक्त में पहले सबसे वो गंगा के घाटों के किनारे दोस्तों के संग चाय की चुस्की वो भी क्या समय था जब हम करते थे संग खूब मस्ती वक्त का पहिया यूंही चलता रहा चल देते सब अपने अपने राह दूर होकर भी आज भी दिल के सबसे पास है सजाएंगे फिर से दोस्ती की पुरानी महफिल आस है