अनाड़ी

 अजीब सी कश्मकश में हू
 समझ नही आ रहा हैं कैसे कहूं
 यह कैसी भूल भुलैया है
 मानो चल रही शनि की ढैय्या है

 कोई रास्ता सूझता नहीं है
 कोई मंजिल दिखाता नही है
 यह दुनिया भी कितनी  है अजीब सी
 लोगो को बदलते हुवे देखा करीब से

जिन पर सब कुछ लुटाया
उन्ही लोगो ने हमको भुलाया
लिया है मुंह हमसे मोड़ 
चल दिए है हमको छोड़ 

इस उलझन से निकलना है बेहतर  
यहां से अब निकल चलना है बेहतर
कही तो सपनों की मजिल नई मिलेगी
नई उम्मीदों की दुनिया फिर से सजेगी










 



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