निरुत्तर
आज सुबह जैसे ही निकला घर से
एक बच्ची मिल गई खड़ी घर के गेट पे
उसकी सहमी आंखे कुछ बोल रही थी
न जाने क्यों कुछ कहना चाह रही थी
जैसे ही उसकी नजर मुझ्से टकराई
उसने भरे गले से अपनी कहानी बताई
नही रहे पिता उसके इस दुनिया में अब
वो मदद मांग रही है सब लोगो से अब
देख रही थी इक उम्मीद आंखों में
मैं भी था बाहर जाने की हड़बड़ी में
न पूछ सका बच्ची से उसके हालात के बारे में
दिन भर सोचता रहा बस उस बच्ची के बारे में
क्या कुछ रूपये से हो जायेगी मदद उनकी
क्या आसान हो जाएगी जीवका उनकी
कहते है ईश्वर जो भी करता है अच्छा करता है
न जाने ईश्वर कभी कभी ऐसा क्यो करता है
इसमें जाने क्या अच्छा दिखाया है
एक बच्ची ने अपने पिता को खोया है
मैने ऊपर आसमां में सवाली नजरों से देखा
ऊपर वाले को भी बेबस और लाचार देखा।
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