हम तो है मजदूर

साहब हम तो है मजदूर 
जो होते है अक्सर वक्त के हाथों  मजबूर 

करते है दिन रात हम जी तोड़ मेहनत
फिर भी नहीं है हमारी इस जहां में कोई इज्जत 

हमारी तो स्थिति होती है नींव के ईट जैसी
जिसकी नहीं है कद्र जहां में  ऊंचे महलों जैसी 

हम तो साहब रोज कमाते और खाते है 
अक्सर खुले आसमान के नीचे अपनी रातों को बिताते है 

हमें तो न कल का पता है और न आज का 
न कब समझेगा ये समाज महत्व हमारे जज्बात का ।

Comments

AKS said…
Very nicely defined the situation of Mazdoor.
P k Tiwari said…
Very nice sir
Ratan said…
Very inspiring sir

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