आस

 
चलो कहीं दूर चले हम
जहां पे ना हो कोई गम

खुला नीला अंबर हो वहां पे
 जहां वो मिल रहा हो जाके धरा से

न अपनो से गिला शिकवा होगा
न  कोई अपनो से रुसवा होगा

न इन आंखों में कोई आंसू होंगे
न उम्मीदों के किले धरासायी होगे

आ चले चल मंजिल की तलाश में
 इक नया आशियाना बनाने आस में।






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