पथिक
ए पथिक तू चला चल जीवन पथ पर
ये माना यह बहुत कठिन है तो क्या
ये माना यह बहुत पथरीली है तो क्या
ये माना यह बहुत कटीली है तो क्या
ये माना इसकी कोई मंजिल नहीं है तो क्या
ये माना इसमें कुछ हासिल नहीं है तो क्या
ये माना इसमें बहुत से मोड़ आयेंगे तो क्या
यह माना इसमें हम गुम हो जायेंगे तो क्या
तुझे बस चलते चले जाना है
तुझे बस बढ़ते चले जाना है
लोग मिलते जायेंगे तो क्या
लोग छूटते जाएंगे तो क्या
कोई अपना बनेगा तो क्या
कोई सपना बनेगा तो क्या
कोई हम पर हँसेगा तो क्या
कोई हमको कहेगा तो क्या
कोई तुझको पगला कहेगा तो क्या
कोई तुझको कांगला कहेगा तो क्या
लोग तुझ पर उंगलियां उठायेंगे तो क्या
लोग तेरी खिल्लिया उड़ाएंगे तो क्या
लोग तुझको पत्थर मारेंगे तो क्या
लोग तुझको दुलारेंगे तो क्या
तुझे इस पथ पर बढ़ते जाना है
तुझे बस चलते चले जाना है
इक दिन जब तू मंजिल पे पहुंचेगा
इक दिन जब तू सफलता को चूमेगा
यह दुनिया तुझको मानेगी
यह दुनिया तुझको जानेगी
लोग तुझको माला पहनाएंगे
तेरे सफलता के कसीदे कहे जायेंगे
फिर भी तुझे चुपचाप चलते जाना है
बस यूंही आगे बढ़ते जाना है......
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