मूल्यह्रास

क्या यही दुनिया है
कोई नही यहा अपना है
मानवता सांसे तोड़ रही है
बनावटी मुस्कुराहते साथ छोड़ रही  है
आज कॉरपोरेट और कारखानों में
एंप्लॉयी और एमोलॉयर के रिश्तों में
नही रही वो पहले वाली एक परिवार वाली बात
अब तो दिखता है सिर्फ नौकर और  मालिक होने जैसा  एहसास
मानीवय मूल्य तो अब कहीं खो से गए है
सभी लोग आजकल खरीदार हो गए है
क्या होगा अब इस दुनिया का
क्या होगा अब नैतिक मूल्यों का
इसी प्रश्न के उत्तर के तलाश में हू
बस इसी प्रश्न के उत्तर के तलाश में हूं।



Comments

ournet said…
That' not enough

Popular posts from this blog

मातृ दिवस

उड़ान

पिताजी